Dhananjay Parmar વિવિધ પ્રકૃતિના માણસો વચ્ચે સૌનો સ્વીકાર કરીને આગળ વધતા રહેવું એ ઘણી મોટી વાત (સમજણ) છે. આ માટે પાયાનું શિક્ષણ સંયુક્ત કુટુંબમાંથી મળતું હોય છે. અનેક વિચારભેદ અને મતભેદો વચ્ચે પણ સૌને જોડી રાખતું તત્વ એ ‘પ્રેમ’ છે. સંયુક્ત કુટુંબ એ પ્રેમના પાઠ શીખવતી આદર્શ પાઠશાળા છે. પરંતુ જો આવી સમજણ જ જીવનમાંથી ચાલી જાય તો……..! |
Hi friend’s
This is just poem and shayari,
इक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ
मुफ़लिस का दिया हूँ मगर आँधी से लड़ा हूँ
जो कहना हो कहिए कि अभी जाग रहा हूँ
सोऊँगा तो सो जाऊँगा दिन भर का थका हूँ
कंदील समझ कर कोई सर काट न ले जाए
ताजिर[1] हूँ उजाले का अँधेरे में खड़ा हूँ
सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे
मैं वक़्त के शोकेस में चुपचाप खड़ा हूँ
वो आईना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ
दुनिया का कोई हादसा ख़ाली नहीं मुझसे
मैं ख़ाक हूँ, मैं आग हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ
मिल जाऊँगा दरिया में तो हो जाऊँगा दरिया
सिर्फ़ इसलिए क़तरा हूँ कि मैं दरिया से जुदा हूँ
हर दौर ने बख़्शी मुझे मेराजे मौहब्बत
नेज़े पे चढ़ा हूँ कभी सूलह[2] पे चढ़ा हूँ
दुनिया से निराली है 'नज़ीर' अपनी कहानी
अंगारों से बच निकला हूँ फूलों से जला हूँ
शब्दार्थ:
↑ व्यापारी, सौदागर
↑ सूली
Credit
: नज़ीर बनारसी
Dhananjay Parmar |
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