Monday, November 23, 2015
Sunday, November 22, 2015
Ab Koi Sauda Koi Junoon Bhi Nahi
Dhananjay Parmar |
प्रणाम मित्रो ,
यह कविता / शायरी , अहमद फ़राज़ जी की हे। अहमद फ़राज़ का मूल नाम सैयद अहमद
शाह है। आप आधुनिक युग के उर्दू के सबसे उम्दा शायरों में गिने जाते हैं।
"फ़राज़" अब
कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं
मगर क़रार से दिन कट रहे
हों यूँ भी नहीं
लब-ओ-दहन भी मिला
गुफ़्तगू का फ़न भी मिला
मगर जो दिल पे गुज़रती है
कह सकूँ भी नहीं
मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से
बदगुमाँ न हो
जो तू कहे तो तुझे उम्र
भर मिलूँ भी नहीं
"फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है
तू पास आये तो मुमकिन है
मैं रहूँ भी नहीं
Monday, June 29, 2015
The Silent Scream
Dhananjay Parmar |
गर्भपात करवाना गलत माना गया है, कृपया इस लेख को अवश्य पढ़े
और
अगर इसे पढ़ कर आपके दिल की धड़कने बढ़ जाये
तो शेयर
अवश्य करे |
गर्भस्थ
बच्ची की हत्या का आँखोँ देखा विवरण :
अमेरिका में सन 1984 में एक सम्मेलन हुआ था - 'नेशनल राइट्स
टू लाईफ
कन्वैन्शन'। इस सम्मेलन के एक प्रतिनिधि ने डॉ॰ बर्नार्ड
नेथेनसन के
द्वारा गर्भपात
की बनायी गयी एक
अल्ट्रासाउण्ड फिल्म 'साइलेण्ट
स्क्रीम' (गूँगी चीख)
का जो विवरण
दिया था, वह इस प्रकार है- 'गर्भ की वह मासूम
बच्ची अभी दस सप्ताह
की थी व काफी चुस्त
थी।
हम उसे अपनी माँ की कोख मेँ खेलते,
करवट बदलते
व अंगूठा चूसते हुए देख रहे थे। उसके दिल
की धड़कनों को भी हम देख पा रहे थे और
वह उस
समय 120 की साधारण गति से धड़क रहा था। सब कुछ
बिलकुल
सामान्य था; किन्तु जैसे ही पहले औजार (सक्सन
पम्प) ने
गर्भाशय की दीवार को छुआ, वह मासूम
बच्ची डर से एकदम घूमकर सिकुड़
गयी और उसके
दिल की धड़कन काफी बढ़
गयी।
हालांकि अभी तक किसी औजार ने
बच्ची को छुआ तक
भी नहीं था, लेकिन
उसे अनुभव हो गया था कि कोई चीज उसके आरामगाह,
उसके
सुरक्षित क्षेत्र पर हमला करने का प्रयत्न कर
रही है। हम
दहशत से भरे यह देख रहे थे कि किस तरह वह औजार उस
नन्हीं-मुन्नी मासूम गुड़िया-
सी बच्ची के टुकड़े-टुकड़े कर रहा था।
पहले कमर,
फिर पैर आदि के टुकड़े ऐसे काटे जा रहे थे जैसे वह
जीवित
प्राणी न होकर कोई गाजर-मूली हो और
वह
बच्ची दर्द से छटपटाती हुई, सिकुड़कर
घूम-घूमकर
तड़पती हुई इस हत्यारे औजार से बचने का प्रयत्न
कर
रही थी। वह इस बुरी तरह
डर
गयी थी कि एक समय उसके दिल
की धड़कन 200 तक पहुँच गयी! मैँने
स्वंय
अपनी आँखों से उसको अपना सिर पीछे
झटकते व
मुँह खोलकर चीखने का प्रयत्न करते हुए देखा, जिसे
डॉ॰
नेथेनसन ने उचित
ही 'गूँगी चीख'
या 'मूक पुकार' कहा है। अंत मेँ हमने वह नृशंस
वीभत्स दृश्य
भी देखा, जब
सँडसी उसकी खोपड़ी को तोड़ने
के लिए
तलाश रही थी और फिर दबाकर उस कठोर
खोपड़ी को तोड़
रही थी क्योँकि सिर
का वह भाग बगैर तोड़े सक्शन ट्यूब के माध्यम से बाहर
नहीं निकाला जा सकता था।' हत्या के इस
वीभत्स
खेल को सम्पन्न करने में करीब पन्द्रह मिनट
का समय
लगा और इसके दर्दनाक दृश्य का अनुमान इससे अधिक और कैसे
लगाया जा सकता है कि जिस डॉक्टर ने यह गर्भपात किया था और
जिसने मात्र
कौतूहलवश इसकी फिल्म
बनवा ली थी,
उसने जब स्वयं इस फिल्म को देखा तो वह
अपना क्लीनिक
छोड़कर चला गया और फिर वापस नहीं आया !
The Silent Scream is a 1984 anti abortion documentary video directed and narrated by Bernard Nathanson, an obstetrician, NARAL Pro Choice America founder, and abortion provider turned pro life activist, and produced in partnership with the National Right to Life Committee. The film depicts the abortion process via ultrasound and shows an abortion taking place in the uterus. During the abortion process, the fetus is described as appearing to make outcries of pain and discomfort. The video has been a popular tool used by the pro-life campaign in arguing against abortion, although it has been criticized as misleading by members of the medical community.
for surrogate mother
'कोख
का
किराया'
मिलेंगा
विज्ञान वरदान
है,
लेकिन
यदि
उसका
गलत
इस्तेमाल
होने
लगे
तो
मानवता
के
लिए
घातक
भी
बन
जाता
है।
ऐसा
ही
कुछ
हो
रहा
है
सरोगेसी
( सोरोगेट
मदर
) के
साथ।
इंफर्टिलिटी और
आईवीएफ
क्लीनिकों
पर
किए
गए
एक
अध्ययन
में
यह
बात
सामने
आई
है
कि
औलाद
पाने
के
इच्छुक
माता-पिता
की
मांग
पूरी
करने
और
अपने
आर्थिक
फायदे
के
लिए
डॉक्टर
किसी
भी
हद
तक
जाने
को
तैयार
हैं।
इसमें काफी
हैरान
करने
वाली
बातें
सामने
आई
हैं।
अध्ययन के
मुताबिक,
एक
औलाद
के
लिए
डॉक्टर
दो
से
तीन
सरोगेट
को
गर्भधारण
करा
देते
हैं।
जिस सरोगेट
मां
के
गर्भ
में
बच्चे
का
बेहतर
विकास
हो
रहा
होता
है,
उसे
छोड़कर
बाकियों
का
गर्भपात
करा
दिया
जाता
है।
ऐसी
घटनाएं
मानवता
को
शर्मसार
करने
वाली
हैं।
साथ
ही
इससे
यह
भी
साबित
होता
है
कि
नैतिकता
को
ताक
पर
रखकर
व्यावसायिक
हित
साधने
के
लिए
कोख
का
इस्तेमाल
फैक्ट्री
के
रूप
में
हो
रहा
है।
सरोगेसी ( सोरोगेट
मदर
) को
खतरों
के
बारे
में
नहीं
बताते।
अध्ययन के
दौरान
व्यावसायिक
सरोगेसी
में
तीन
चीजों
बहु
गर्भधारण
(मल्टीपल
प्रेग्नेंसी),
गर्भ
में
बच्चे
का
खराब
होना
और
प्रसव
के
तरीकों
पर
विशेष
ध्यान
केंद्रित
किया
गया।
इसमें पाया
गया
कि
सेरोगेट
मां
सरोगेसी
के
लिए
अपनी
सहमति
तो
देती
है,
लेकिन
इसके
बाद
के
ज्यादातर
फैसले
डॉक्टर
खुद
ही
करते
हैं।
Wednesday, May 6, 2015
Ek Kahani Teri Ek Kahani Meri
एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा....
अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी।
जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला।
किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था, राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली।
ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा।
ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया, ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को फिर से उस पर दया आ गयी अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को मूल्यवान एक माणिक दिया।
ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराना घड़ा था जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया।
किन्तु उसका दुर्भाग्य, दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी... इस बीच
ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने चली गयी किन्तु मार्ग में
ही उसका घड़ा टूट गया, उसने सोंचा, घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है उसे ले आती हूँ, ऐसा विचार कर वह घर लौटी और उस पुराने घड़े को ले कर
चली गई और जैसे ही उसने घड़े
को नदी में डुबोया वह माणिक भी जल की धारा के साथ बह गया।
ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया।
अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था में देखा तो जाकर उसका कारण पूंछा।
सारा वृतांत सुनकर अर्जुन को बड़ी हताशा हुई और मन ही मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता।
अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई।उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए।
तब अर्जुन ने उनसे पुछा “प्रभु
मेरी दी मुद्राए और माणिक
भी इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से
इसका क्या होगा” ?
यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और अर्जुन से उस
ब्राहमण के पीछे जाने को कहा।
रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि "दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया ? प्रभु की यह कैसी लीला है "?
ऐसा विचार करता हुआ वह
चला जा रहा था उसकी दृष्टि एक मछुवारे पर पड़ी, उसने देखा कि मछुवारे के जाल में एक
मछली फँसी है, और वह छूटने के लिए तड़प रही है ।
ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी। उसने सोचा"इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं।क्यों? न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये"।
यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया और मछली को अपने कमंडल में डाल लिया। कमंडल में जल भरा और मछली को नदी में छोड़ने चल पड़ा।
तभी मछली के मुख से कुछ निकला।उस निर्धन ब्राह्मण ने देखा ,वह वही माणिक था जो उसने घड़े में छुपाया था।
ब्राहमण प्रसन्नता के मारे चिल्लाने लगा “मिल गया, मिल गया ”..!!!
तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी।
उसने ब्राह्मण को चिल्लाते हुए सुना “ मिल गया मिल गया ” लुटेरा भयभीत हो गया। उसने सोंचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया है और इसीलिए चिल्ला रहा है, अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा।
इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा। और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी।
यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके।
अर्जुन बोले,प्रभु यह कैसी लीला है? जो कार्य थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका वह आपके दो पैसो ने कर दिखाया।
श्री कृष्णा ने कहा “अर्जुन यह अपनी सोंच का अंतर है, जब तुमने उस निर्धन को थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ और मूल्यवान माणिक दिया तब उसने मात्र अपने सुख के विषय में सोचा। किन्तु जब मैनें उसको दो पैसे दिए। तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा। इसलिए हे अर्जुन-सत्य तो यह है कि, जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है, जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं, और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।
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