Monday, November 23, 2020

Aziiz Itnaa Hii Rakkho Ki Jii Sambhal Jaae

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए

 

 

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए

अब इस क़दर भी चाहो कि दम निकल जाए

 

मिले हैं यूँ तो बहुत आओ अब मिलें यूँ भी

कि रूह गर्मी-ए-अनफ़ास से पिघल जाए

 

मोहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा

कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाए

 

ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे

ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए

 

मैं वो चराग़ सर-ए-रहगुज़ार-ए-दुनिया हूँ

जो अपनी ज़ात की तन्हाइयों में जल जाए

 

हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरत

जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए

 

 

Credit : उबैदुल्लाह अलीम