Dhananjay Parmar एक मोमबत्ती जल रही थी लोग उसके उजाले में अपना काम कर रहे थे ,
अचानक
एक मनुष्य ने मोम से पूछा - एक बात बताइए ,
जल तो
धागा रहा है
फिर
आप क्यों पिघल रहे है ,,
तो मोम
का उत्तर
सुनकर
वह नतमस्तक हो गया,
उत्तर
यह था -----
जिसे
दिल में बसा रखा है , उसे जलते हुए नहीं देखा जाता |
Hi friend’s
This is just poem and
shayari,
तीन रंगो के
लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
लौट आया है मेरा दोस्त
अखबारों के पन्नों
और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
उदास बैठै हैं पिता
थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन
सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
बार-बार फूट पड़ती है पत्नी
कभी-कभी
एक किस्से का अंत
कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है
और किस्सा भी क्या?
किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
फिर सपनीली उम्र आते-आते
सिमट जाना सारे सपनो का
इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के
अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग
या फिर केवल योग
कि दे’शभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
और नौकरी जिंदगी की
इसीलिये
भरती की भगदड़ में दब जाना
महज हादसा है
और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
’शहादत!
बचपन में कुत्तों के डर से
रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
आठ को मार कर मरा था
बारह दु’शमनों के बीच फंसे आदमी के पास
बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?
वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
दरअसल उस दिन
अखबारों के पहले पन्ने पर
दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
और उसी दिन ठीक उसी वक्त
देश के सबसे तेज चैनल पर
चल रही थी
क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा
एक दूसरे चैनल पर
दोनों दे’शों के म’शहूर ’शायर
एक सी भाषा में कह रहे थे
लगभग एक सी गजलें
तीसरे पर छूट रहे थे
हंसी के बेतहा’शा फव्वारे
सीमाओं को तोड़कर
और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
दबी थीं
अलग-अलग वर्दियों में
एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
नौ बेनाम ला’शों
अजीब खेल है
कि वजीरों की दोस्ती
प्यादों की लाशों पर पनपती है
और
जंग तो जंग
’शाति भी लहू पीती है!
Credit : Ashok Kumar Pandey
Credit : Republic of India / Bharat Ganrajya : Soldier
Dhananjay Parmar Pehle teri thi justuju mujh ko, Ab mein apni talaash karta hoon.. |
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